इतिहास गवाह है कि क्रांति के लिए लोगों की संख्या बल भर कभी पर्याप्त नहीं होती। किसी भी बड़ी क्रांति की रचना सामान्यतयः बड़े जनसमूहों के बजाय आंदोलनकारियों के छोटे-छोटे समूहों ने ही की है। मेरा अपना मानना है कि एक देश एक संगठन कभी कारगर नहीं हो सकता बल्कि तमाम सारे संगठनों को एक उद्देश्य पर केंद्रित होकर काम करना होगा। *अगर आप किसी क्रांति अर्थात बड़े कार्य की शुरुआत करना चाहते हैं तो इस पर मत ध्यान दीजिए कि कितने लोग हैं जो मेरे समर्थन में हैं या मेरे साथ हैं, बल्कि इस पर ध्यान दीजिए कि मेरा समर्थन करने वाले कितने लोग हैं जो काबिलेगौर तरीके से आपसी सहयोग कर सकते हैं या करने में समर्थ हैं?*
उदाहरण के लिए आप संत गाडगे महाराज, बाबा साहब भीमराव आंबेडकर जी, ज्योतिबा फुले, सावित्रीबाई फुले आदि को देखिए।
स्वच्छता अभियान के जनक गाडगे महाराज ने अकेले ही स्वच्छता को जन-जन तक पहुंचा दिया और अंग्रेजों के शासनकाल में भी वंचितों की शिक्षा सहित तमाम महत्वपूर्ण कार्यों के लिए जो अलख जगाई वह आज हमारे सामने है।
बाबा साहब लोगों को इंसान बनाने अर्थात इंसानियत का दर्जा दिलाने के लिए अकेले ही काफी साबित हुए। स्त्री शिक्षा की ज्योति जलाने वाले ज्योतिराव फुले भी अनोखी मिशाल हैं।
इतिहास गवाह है कि जिन लोगों ने बेहतर तरीके से आपसी सहयोग किया उनकी जीत निरपवाद ढंग से हुई। संगठित, लक्ष्य के प्रति केंद्रित और अनुशासित अभिजात वर्ग ने हमारे जैसे बिखरे हुए जन समूहों पर अपना वर्चस्व किस तरह से कायम किया यह किसी से छुपा हुआ नहीं है। यह कोई इकलौता उदाहरण नहीं है अपितु ऐसे अनगिनत उदाहरणों से पुस्तके भरी हुई हैं, जिनमें संख्या बल के बिना ही बहुत बड़े बड़े काम देखने को मिल जाएंगे।
कारगर तरीके से आपसी सहयोग करने में हम लोग जब तक पीछे रहेंगे तब तक सताए जाते रहेंगे, हमारा दमन और उत्पीड़न होता रहेगा।
इसलिए हमें भी ज्यादा कारगर ढंग से आपसी सहयोग (जिसमें लचीलापन भी बहुत आवश्यक है) करने की काबिलियत सीखना होगा। *अगर हम खुद को संगठित करना नहीं सीख सकते तो न तो शासन में हमारी भागीदारी हो सकती है और न हम कभी शासन कर या संभाल पाएंगे*, क्योंकि हम आज तक नहीं जान पाए हैं कि आपस में सहयोग कैसे किया जाता है? और एक दक्ष संगठन कैसे खड़ा किया जाता है? जो हमारे अपने समुदाय के हितों का ध्यान रख सकता है।
हमे यह भी ध्यान रखना होगा कि केवल लोगों को एकजुट कर लेना  भर ही मायने नहीं रखता बल्कि राजनैतिक व्यवस्था पर अपनी पकड़ बनाना, सही समय पर सही लोगों से हाथ मिलाना और शासन में भागीदारी या शासन को प्रभावशाली ढंग से चलाना भी बहुत मायने रखता है नहीं तो 2011 की मिस्र की क्रांति का क्या हस्र हुआ था हमें याद ही होगा?
इसलिए हमें संख्या बल पर ध्यान न देने के बजाय कारगर ढंग से हमारे मिशन को जन-जन तक पहुंचाने वाले समर्थकों को एकजुट कर काम करने पर ध्यान देना होगा।
*नरेन्द्र दिवाकर*
मो. 9839675023
													
								 Sign in							
							
								
									
											
										
											
		
					
								
			
			
	
										
									
								
							
												
				
				
				 Sign in
				
					
						
						
										
				
			
			Recover your password.
A password will be e-mailed to you.
additional reading yoloxxx.com busty milfs pussylicking with cute stepteen.
Prev Post
Next Post
sikiş reina sakai poses nude while fingering her twat.