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*क्या है महीन जातिवाद?*

*क्या है महीन जातिवाद?*

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*क्या है महीन जातिवाद?*

जो लोग जितना अधिक पढ़े-लिखे हैं वे उतना ही महीन जातिवाद करते हैं जो हम/आप को आसानी से समझ नहीं आता। हम बड़ी आसानी से कह देते हैं कि अरे! आजकल ऐसा कुछ नहीं है। लेकिन ऐसा होता है, हो सकता है आपको यकीन न हो। तो इसलिए एक उदाहरण बताता हूँ जो कि कपोलकल्पित न होकर सत्य घटना है। अभी हाल ही में छत्तीसगढ़ में एक आरक्षी/सिपाही (जो कि धोबी के पद पर कार्यरत है) को उसके अधिकारी ने वर्दी के साथ-साथ अपने अंडरगारमेंट्स (अंडरवियर) भी धोने का आदेश दिया तो आरक्षी (ठहरा पढ़ा-लिखा और समझदार) ने अंडरगारमेंट्स धोने से मना कर दिया तो उस अधिकारी का इगो हर्ट हुआ तो उसने अपर अधिकारी से शिकायत की। ऊपर के अधिकारी ने उस आरक्षी को स्पष्टीकरण देने का आदेश जारी कर दिया। जवाब में आरक्षी ने अपने स्पष्टीकरण पत्र में साफ-साफ लिखा कि अंडरगारमेंट्स सिविल कपड़ा है न कि वर्दी और कहीं भी यह नहीं लिखा कि धोबी ट्रेड वाले आरक्षी को वर्दी के साथ-साथ अधिकारियों के अंडरगारमेंट्स भी धोने होंगे इसलिए आरक्षी से जबरन अंडरगारमेंट्स धुलवाना उसके सम्मान को ठेस पहुंचाना है। कहीं से उक्त संबंधित दस्तावेज (अधिकारी द्वारा आरक्षी को जारी किया गया अस्पष्टीकरण आदेश और अधिकारी को आरक्षी द्वारा दिया गया स्पष्टीकरण पत्र दोनों) सोशल मीडिया पर वायरल हो गए और प्रदेश के पुलिस महानिदेशक पहुंच गए तब उन्होंने जांच के आदेश दे दिए।
तो साथियों उपरोक्त मामला महीन जातिवाद का ही उदाहरण है। वह इसलिए कि बहुत सारे लोगों ने कहा कि “क्या हुआ अधिकारी नेअंडरगारमेंट्स धुलने के लिए कहा था तो क्या गलत किया? नौकर ही तो था और जैसे वर्दी कपड़ा था वैसे ही अंडरगारमेंट्स भी तो एक कपड़ा ही तो था।”
जबकि वह अधिकारी यह जनता था कि आरक्षी का काम है वर्दी धुलना न कि सिविल कपड़े धुलना फिर भी उसने आरक्षी को अंडरवियर धुलने के लिए इसीलिए कहा क्योंकि वह यह जानता था कि आरक्षी जाति से भी धोबी है इसलिए इससे ऐसा काम भी लिया जा सकता है। यह कोई पहला मामला नहीं है। मेरे शोध के दौरान जब मैं तथ्य संकलन कर रहा था, नई दिल्ली में सी आर पी एफ में धोबी ट्रेड पर तैनात एक आरक्षी ने बताया था कि 8 लोग धोबी ट्रेड पर नियुक्त हैं लेकिन 3 लोगों को ही इस पद का कार्य करना पड़ता है बाकी को नहीं क्योंकि तीनों लोग धोबी जाति से ही आते हैं अन्य 5 लोग उच्च जातियों से आते थे इसलिए कोई किसी अधिकारी की गाड़ी चलाता था तो कोई खाना बनाता था तो कोई अन्य कार्य करता था। ऐसे ही और भी मामले मेरे सामने आए परंतु सबके नौकरी बचाने के लिए शिकायत न करने के अपने-अपने तर्क रहे। जब मैंने उनसे उच्च अधिकारियों को शिकायत करने को कहा तो उन्होंने कहा कि नौकरी से भी हाथ धोना पड़ सकता है, फिर बच्चे नहीं पढ़ पाएंगे इसलिए चुपचाप नौकरी कर रहे हैं। विदित हो कि छत्तीसगढ़ के जगदलपुर वाले मामले में भी आरक्षी द्वारा स्पष्टीकरण जवाब/पत्र लिखने के तुरंत बाद उसका स्थानांतरण बीजापुर कर दिया गया है।
नौकरियों में आरक्षित वर्गों के पदों का घपला, विभिन्न संस्थानों में संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों को प्रवेश न देना और प्रमोशन में आरक्षण के नियमों का उल्लंघन आदि महीन जातिवाद का ही उदाहरण है। इससे इतर भी उदाहरण देखे/महसूस किए जा सकते हैं यदि बारीकी से देखा/महसूस किया जाय तो। यह भी हो सकता है कि जिन लोगों के साथ इस तरह की घटना न घटी हो और वे इससे असहमत भी हो सकते हैं, लेकिन यथार्थ यही है जिससे इनकार नहीं किया जा सकता।
इसलिए अब आवश्यकता है कि हम एक ऐसा संगठिनक ढांचा (प्रदेश और देश स्तर पर अलग-अलग) तैयार करें जो जाति आधारित भेदभावपूर्ण व्यवहार और उत्पीड़न के मामलों में अपने समुदाय के कर्मचारियों का सहयोग करने को तत्पर हो जिससे इस तरह के महीन जातिवाद से निपटा जा सके।

*नरेन्द्र दिवाकर*
मो. 9839675023

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